श्री झूलेलाल चालीसा

श्री झूलेलाल चालीसा (Shri Jhulelal Chalisa)

॥ दोहा ॥

जय जय जल देवता,
जय ज्योति स्वरूप।
अमर उडेरो लाल जय,
झुलेलाल अनूप॥

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॥ चौपाई ॥

रतनलाल रतनाणी नंदन ।

जयति देवकी सुत जग वंदन ॥

दरियाशाह वरुण अवतारी ।

जय जय लाल साईं सुखकारी ॥

जय जय होय धर्म की भीरा ।

जिन्दा पीर हरे जन पीरा ॥

संवत दस सौ सात मंझरा ।

चैत्र शुक्ल द्वितिया भगऊ वारा ॥4॥

ग्राम नसरपुर सिंध प्रदेशा ।

प्रभु अवतरे हरे जन कलेशा ॥

सिन्धु वीर ठट्ठा राजधानी ।

मिरखशाह नऊप अति अभिमानी ॥

कपटी कुटिल क्रूर कूविचारी ।

यवन मलिन मन अत्याचारी ॥

धर्मान्तरण करे सब केरा ।

दुखी हुए जन कष्ट घनेरा ॥8॥

पिटवाया हाकिम ढिंढोरा ।

हो इस्लाम धर्म चाहुँओरा ॥

सिन्धी प्रजा बहुत घबराई ।

इष्ट देव को टेर लगाई ॥

वरुण देव पूजे बहुंभाती ।

बिन जल अन्न गए दिन राती ॥

सिन्धी तीर सब दिन चालीसा ।

घर घर ध्यान लगाये ईशा ॥12॥

गरज उठा नद सिन्धु सहसा ।

चारो और उठा नव हरषा ॥

वरुणदेव ने सुनी पुकारा ।

प्रकटे वरुण मीन असवारा ॥

दिव्य पुरुष जल ब्रह्मा स्वरुपा ।

कर पुष्तक नवरूप अनूपा ॥

हर्षित हुए सकल नर नारी ।

वरुणदेव की महिमा न्यारी ॥16॥

जय जय कार उठी चाहुँओरा ।

गई रात आने को भौंरा ॥

मिरखशाह नऊप अत्याचारी ।

नष्ट करूँगा शक्ति सारी ॥

दूर अधर्म, हरण भू भारा ।

शीघ्र नसरपुर में अवतारा ॥

रतनराय रातनाणी आँगन ।

खेलूँगा, आऊँगा शिशु बन ॥20॥

रतनराय घर ख़ुशी आई ।

झुलेलाल अवतारे सब देय बधाई ॥

घर घर मंगल गीत सुहाए ।

झुलेलाल हरन दुःख आए ॥

मिरखशाह तक चर्चा आई ।

भेजा मंत्री क्रोध अधिकाई ॥

मंत्री ने जब बाल निहारा ।

धीरज गया हृदय का सारा ॥24॥

देखि मंत्री साईं की लीला ।

अधिक विचित्र विमोहन शीला ॥

बालक धीखा युवा सेनानी ।

देखा मंत्री बुद्धि चाकरानी ॥

योद्धा रूप दिखे भगवाना ।

मंत्री हुआ विगत अभिमाना ॥

झुलेलाल दिया आदेशा ।

जा तव नऊपति कहो संदेशा ॥28॥

मिरखशाह नऊप तजे गुमाना ।

हिन्दू मुस्लिम एक समाना ॥

बंद करो नित्य अत्याचारा ।

त्यागो धर्मान्तरण विचारा ॥

लेकिन मिरखशाह अभिमानी ।

वरुणदेव की बात न मानी ॥

एक दिवस हो अश्व सवारा ।

झुलेलाल गए दरबारा ॥32॥

मिरखशाह नऊप ने आज्ञा दी ।

झुलेलाल बनाओ बन्दी ॥

किया स्वरुप वरुण का धारण ।

चारो और हुआ जल प्लावन ॥

दरबारी डूबे उतराये ।

नऊप के होश ठिकाने आये ॥

नऊप तब पड़ा चरण में आई ।

जय जय धन्य जय साईं ॥36॥

वापिस लिया नऊपति आदेशा ।

दूर दूर सब जन क्लेशा ॥

संवत दस सौ बीस मंझारी ।

भाद्र शुक्ल चौदस शुभकारी ॥

भक्तो की हर आधी व्याधि ।

जल में ली जलदेव समाधि ॥

जो जन धरे आज भी ध्याना ।

उनका वरुण करे कल्याणा ॥40॥

॥ दोहा ॥

चालीसा चालीस दिन पाठ करे जो कोय,
पावे मनवांछित फल अरु जीवन सुखमय होय।

श्री वरुणाय नमः ॥

– झूलेलाल चालीसा के बारे में अतिरिक्त जानकारी:

1. पृष्ठभूमि:

झूलेलाल चालीसा एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्तोत्र है जो झूलेलाल जी के प्रति भक्ति को प्रकट करता है। झूलेलाल जी, सिंध समुदाय के प्रमुख देवता हैं, जिनकी पूजा विशेषकर सिंधी समुदाय में बड़े श्रद्धा और भक्ति के साथ की जाती है। वे पानी और समृद्धि के देवता माने जाते हैं।

2. महत्व:

  • झूलेलाल जी: झूलेलाल जी को सिंधु के देवता के रूप में पूजा जाता है। उन्हें जीवन की कठिनाइयों और समस्याओं को दूर करने वाला माना जाता है।
  • चालीसा का उद्देश्य: झूलेलाल चालीसा को पढ़ने से भक्ति की वृद्धि होती है और उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी होता है जो कठिनाई और समस्याओं का सामना कर रहे होते हैं।

3. संरचना:

  • चालीसा: चालीसा का मतलब होता है 40 श्लोकों से बनी एक प्रार्थना। झूलेलाल चालीसा भी 40 श्लोकों से युक्त होता है, जो झूलेलाल जी की स्तुति और पूजा के लिए होता है।
  • पाठ विधि: यह चालीसा आमतौर पर विशेष अवसरों पर, जैसे झूलेलाल जयंती, या जब किसी को विशेष आशीर्वाद की आवश्यकता हो, पढ़ी जाती है।

4. लाभ:

  • आध्यात्मिक शांति: चालीसा का पाठ मानसिक शांति और आध्यात्मिक संतुलन को बढ़ाता है।
    सुख और समृद्धि: झूलेलाल जी की भक्ति से जीवन में सुख और समृद्धि बढ़ती है। यह आर्थिक और व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान करता है।
    सकारात्मक ऊर्जा: यह नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है और सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है।

5. पाठ विधि:

  •  स्नान और शुद्धता: चालीसा का पाठ करने से पहले अच्छे से स्नान करें और स्वच्छ कपड़े पहनें। यह पूजा की पवित्रता बनाए रखता है।

  • पवित्र स्थान: एक शांत और स्वच्छ स्थान पर बैठें, जहां आप बिना किसी विघ्न के पूजा कर सकें।

  •  दीया और फूल: झूलेलाल जी की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं और फूल अर्पित करें। यह सम्मान और भक्ति को दर्शाता है।

  •  चालीसा का पाठ: झूलेलाल चालीसा को ध्यान और श्रद्धा के साथ पढ़ें। आमतौर पर इसे 1 या 11 बार पढ़ने की परंपरा है।

  • -नैवेद्य और प्रसाद: पूजा के अंत में झूलेलाल जी को नैवेद्य (भोग) और प्रसाद अर्पित करें। इसे परिवार के साथ बांटें और आशीर्वाद प्राप्त करें।

6. लोकप्रिय श्लोक:

चालीसा की शुरुआत झूलेलाल जी की विशेषताओं और गुणों की स्तुति से होती है। यह बताता है कि उनके आशीर्वाद से कैसे जीवन में सुधार होता है।

(इस जानकारी से आप झूलेलाल चालीसा के महत्व और पूजा विधि को सही से समझ सकते हैं)

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